इस बेकफ़न बदन को चुबती ठंड से,
आज़ाद हवाओं में कैद मेरी अंगड़ाई से,
मुरादों से भरी इस नदी में किसी मग़रूर के बहते ग़मो से,
और
किनारे से झांकती मेरी अपनी ही हक़ीक़त से,
मुलाक़ात होती है।
मगर हर सवेरे मैं युही मेरे ख्वाबों की फटी चादर को तह कर रखता हूं,
बस युही मेरी रंजिशों को चेहरे की सिलवटों के पीछे छिपाता हूं।
हर सवेरे मैं युही बालों को सवारता हूं,
बिखरे मेरे आँसुओ को बस युही समेट कर रखता हूं।
किसे पता, शायद किसी रोज़ ज़िंदगी से भी मुलाक़ात हो जाये।
Photo Credit: Mr. Nitin Salunke
#mannkasturi in collaboration with Mr. Nitin Salunke